तस्वीर में है वुरूद स्वालिहा
खेल
अलग चीज़ है और बदन की नुमाईश अलग चीज़ है. खिलाड़ी अपने खेल का जौहर दिखाने
आते हैं. उन्हें अपने बदन की नुमाईश पर मजबूर करना ठीक नहीं है.
इस बार मुस्लिम खिलाड़ियों को इस्लामी लिबास के साथ खेलने का मौक़ा देकर ओलिंपिक के ज़िम्मेदारों ने एक अच्छी मिसाल पेश की है.
इंसान का लिबास उसकी सोच का आईनादार है। खेल के नाम पर आज औरत की अस्मत से खेला जा रहा है और आधुनिकता के नाम पर औरतें यह सब ख़ुशी ख़ुशी बर्दाश्त भी कर रही हैं। घूंघट और पर्देदारी वाली औरतों को बैकवर्ड कहा जा रहा है। जो औरतें करिअर के नाम पर अपने उसूल छोड़ती नहीं हैं दुनिया को एक दिन उनका हक़ देना ही पड़ता है।
ReplyDeleteअच्छी ख़बर दी है आपने ।
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इस्लामी लिबास में खेला जा सकता है यह आज साबित हो गया |
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