Tuesday, 31 July 2012
Monday, 30 July 2012
मिस्र में बापर्दा औरतों ने न्यूज़ चैनल खोल लिए हैं
Saturday, 28 July 2012
Sunday, 22 July 2012
रोज़े और रमज़ान के अहकाम
- कुछ रोज़ेदारों से होने वाली ग़लतियों या कमियों पर चेतावनी ( हिन्दी )
- रोज़े के महत्वपूर्ण अहकाम व मसाईल ( हिन्दी )
- रोज़े से संबंधित अहकाम एंव फतावे ( हिन्दी )
- रोज़ा फासिद कर देने वाली चीज़ैं ( हिन्दी )
Sunday, 8 July 2012
अंग्रेज़ों वापस आओ / एक गंभीर लेख
मुझे गूगल सर्च के द्वारा पढ़ना बहुत पसंद है. इसके लिए मैं कुछ शब्द लिखकर गूगल सर्च में डालता हूं और फिर हिंदी लेख पढ़ता हूं. यह एक मनोरंजक अनुभव होता है. इसके द्वारा हम उन हिंदी लेखकों तक पहुंचते हैं जिन तक हम किसी और तरह नहीं पहुंच सकते. इसी कोशिश में आज मुझे एक ऐसा लेख पढ़ने को मिला जिससे हमें एक आम आदमी के मन में झांक सकते हैं. क्या सच में आज कोई यह कह सकता है -
Copy Link : http://zeya786shahjahani.blogspot.in/2012/04/blog-post_1798.html
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अंग्रेज़ों वापस आओ / एक गंभीर लेख
एक ज़माना था जब हमारा हिंदोस्तान गुलामी की ज़ंजीरों में जकड़ा हुआ था गोरों के अत्याचारों की चक्की में भारतीय जनमानस पिस रहा था उनका एक ही उद्देश्य था अपना डर पैदा करके हुकूमत करना भारत की प्राकृतिक,पारम्परिक और आर्थिक सम्पदा का दोहन करते हुए अपने देश ब्रिटेन का भला करना / उन्होंने लूट-खसोट भले ही मचा रखी हो परन्तु वे भारत को भी अपने देश इंगलैंड की तरह एक विकसित राष्ट्र के रूप में देखना चाहते थे उन्होंने नहरें खुदवाईं,बड़ी-बड़ी इमारतों का निर्माण करवाया,लार्डडलहौजी के नेतिरित्व में एक लम्बे रेलवे मार्ग की बुनियाद रखी इसके अलावा और भी बहुत सारे काम थे जो उन्होंने अपने स्वार्थ के लिए साधे थे लेकिन परोछ रूप में कहीं न कहीं हमारा भारत भी प्रगति कर रहा था मगर उस समय देश के सर्वहित के लिए जो सब से अहम बदलाव हो रहा था वो था जनता के हिर्दय में देशप्रेम की भावना का मज़बूत होना / स्वतन्त्रता संग्राम की आँधी में अंग्रेज़ों के पाँव धीरे-धीरे उखड़ते जा रहे थे / देश का बच्चा-बच्चा अपने वतन के लिये समर्पित हो गया था हमारे वे महानायक जो अंग्रेज़ों से लोहा ले रहे थे उनमे गाँधी,नेहरू खान अब्दुल गफ्फ़ार खां जैसे अहिंसा वादी नेता शामिल थे तो दूसरी तरफ भगत सिंह,आज़ाद और अशफ़ाक उल्ला खां जैसे क्रान्ति वीर थे और इन सबके प्रयास से जलाई गई देश प्रेम की दिव्य ज्योती प्रत्येक ह्रदय में प्रज्वल्लित थी उस समय पूरा देश एक ही भावना एक ही विचार में बंधा हुआ था हर व्यक्ति के जीवन का जैसे मात्र एक ही उद्देश्य रह गया था और वो था गोरों को अपने वतन से खदेड़ देना / एक नारा था जो स्वंत्रता की इस लड़ाई में बहुत ही शक्तिशाली था एक नारा जो उस समय हर भारतवासी की ज़बान पर था वो नारा था अंग्रेज़ों वापस जाओ-अंग्रेज़ों वापस जाओ और अंग्रेज़ देश छोड़ गए मुल्क आज़ाद हो गया लेकिन इस महासमर में अधिकतर हिंदुस्तानियों ने इस आज़ादी की क़ीमत चुकाई थी किसी ने बेटा तो किसी ने भाई और किसी ने पिता खोया था और इस नुकसान की भरापाई नामुमकिन थी लेकिन हमारी आज़ादी इन सब कुर्बानियों से ऊपर थी / फिर संविधान बना पहली सरकार का गठन हुआ देश के वे सपूत जो स्वतंत्रता संग्राम के इस यज्ञ कुण्ड में अपना सर्वत्र होम कर चुके थे देश की बागडोर भी अब उन्हीं के ज़िम्मेदार हाँथों में थी और आँखों में एक ही सपना कि अपनी लुटी-पिटी माँ भारती को फिर से सजाना-संवारना है इसकी खोई हुई साख फिर से वापस लानी है अपने देश को फिर से सोने की चिड़िया बनाना है फिर से इसे विश्वगुरु की गौरवमई पदवी पर सुशोभित करना है / आशा के दीप प्रत्येक आँख में जगमगा रहे थे / जो प्रशासनिक ढाँचा उस समय तैयार किया गया था उसमे लगी एक-एक ईंट ईमानदार और वफादार थी लगभग पूरी तरह ढह चुके भारत को इसकी उसी आन-बान और शान के साथ दोबारा खड़ा करना था और ये एक बड़ी चुनौती थी मगर उन्होंने कर दिखाया आज़ादी का एक दशक बीतते-बीतते माँ भारती का ललाट अपनी उसी आभा के साथ फिर से दमकने लगा था होटों पर गौरवमई मुस्कान फिर से खेलने लगी थी और ये देश के उन सच्चे सपूतों के अथक प्रयासों से संभव हुआ था ये आजादी के बाद का एक स्वर्णिम युग था वे जो इसके सूत्रधार थे और उनके लिए अपना देश सबसे पहले था स्वयं के जीवन से भी पहले वे जिन्होंने माँ भारती की बेड़ियाँ काटी थीं अपनी रक्त-आहुति देकर स्वंत्रता रुपी वरदान प्राप्त किया था और माँ भारती अपने बेटों का ये प्रेम,बलिदान और समर्पण पाकर खुशी से झूम रही थी अपने सौभाग्य पर इतरा रही थी और फिर समय चक्र घूमाँ आज़ादी के बाद देश की एक नई बुनियाद रखने वालों की कई पीढ़ियाँ गुज़र गईं और इसी के साथ धीरे-धीरे सब कुछ बदल गया आज पवित्र गंगा का निर्मल जल् दूषित हो चुका है हिमालय की वादियों से चलने वाली सुगन्धित पवन अपने पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश की अयोध्या नगरी तक पहुँचते-पहुँचते ज़हरीली हो जाती है आज भ्रष्टाचार देश की राजधानी दिल्ली के सदन में खड़ा होकर नोट उछाल रहा है तो कभी संसद भवन में घुसकर देश की प्रतिष्ठा पर जूता-चप्पल फेंक रहा है इस तरह ये देश की गरिमा को ही नहीं रौंद चुका है बल्कि ये हिदुस्तान की रगों में दौड़ते लहू को ब्लड-कैन्सर बनकर चाट रहा है गरीब भारत के मुँह से निवाला छीन रहा है अब देश के हर बड़े-छोटे ओहदे पर भ्रष्टाचार रुपी कोबरा कुंडली मारे बैठा है / पूरा का पूरा प्रसाशनिक तंत्र इसकी चपेट में है / घोटाले,रिश्वतखोरी,बेईमानी,जालसाजी,ठगी,बलात्कार और हत्याओं का बोलबाला है गेट पर खड़े चपरासी से लेकर संसद में बैठा नेता तक इन अपराधों में लिप्त पाया जा रहा है इस खोखली तरक्की और गरीबों का खून पीकर अमीर बने अमीरों की दौलत की चकाचौंध तले बेरोज़गारी और लाचारी सिसक रही है अन्नदाता कहा जाने वाला किसान भुखमरी के कारण आत्महत्या करने पर मजबूर है / प्राचीन भारत की स्त्री का गौरव और सम्मान न जाने कहाँ खो गया है / आज खादी में जनता के सेवक या रक्षक नहीं बल्कि भक्षक पाए जाते हैं जिनके कारण आज़ादी के बाद से अब तक माँ भारती को अनगिनत त्रसिदियाँ झेलनी पड़ी हैं और अभी भी झेलनी पड़ रही हैं और ये अंग्रेज़ों के द्वारा किये गए अत्याचारों से कहीं अधिक पीड़ादायक है क्योंकि ये पीड़ा इसे अपने बच्चों से पहुँच रही है / आज खादी और खाकी पर साक्षात शैतान का कब्ज़ा हो चुका है क्या हमने ऐसी ही आज़ादी का सपना देखा था ? क्या आज़ादी के मतवालों ने अपनी आँखों में आने वाले कल के भारत की यही तस्वीर सजाई थी ? क्या उन्होंने अपना सर्वत्र इसी दिन के लिए बलिदान किया था ? नहीं कदापि नहीं और यदि वो अपनी माँ भारती की ये दुर्गति देख रहे होंगे तो यकीनन उनकी आत्माएं तड़प रहीं होंगीं आँखें खून के आँसू रो रही होंगी अरे अंग्रेज़ तो विदेशी थे जो खुले-आम देश को लूट रहे थे लेकिन इसके पीछे उनका मकसद अपने देख का भला करना था यानि वे देशभक्त थे लेकिन माँ भारती के इन कपूतों को क्या कहा जाये जो उन अंग्रेज़ों से कहीं अधिक क्रूरता के साथ लूट-पाट मचा रहे हैं लाखों-लाख करोड़ रुपया इनके विदेशी खातों में जमा हो चुका है इसके बावजूद भी ये लूट-मार बन्द नहीं हो रही है ऐसा लगता है जैसे ये खून की आखरी बूंद तक निचोड़ लेने की योजना पर अमल कर रहे हों और इन अत्याचारी कपूतों के द्वारा दी जा रही इस वेदना की शिददत से हिन्दुस्तान तड़प रहा है भुखमरी और बेरोजगारी रुपी विलाप इसका ह्रदय-विदारक क्रन्दन चारों दिशाओं को थर्रा रहा है लगता है जैसे इन शैतानों के आगे भगवान भी बेबस होकर रह गया है / देशभक्त शहीदों ने अपनी जान पर खेलकर स्वतन्त्रता रुपी जो विजयमाला अपनी माँ भारती के गले में डाली थी और आज उस माला का एक-एक पुष्प जैसे विषैली नागफनी बनकर इसके गले को छलनी किये जा रहा है वो तिरंगा रुपी पवित्र वस्त्र जो इसे समर्पित किया था वो जैसे एक अजगर बनकर इसे जकड़ चुका हैं और माँ भारती का दम अहिस्ता-अहिस्ता घुटता जा रहा है सुन्दर मुखमंडल पर दिव्य आभा की जगह वेदना की पीड़ा नज़र आ रही है और अब एक माँ जैसे अपने बच्चों से ही दया की भीख माँगते-माँगते थक चुकी है और अब जैसे इसका दर्द अपनी अन्तिम सीमा पर है ये पीड़ा अपनी अन्तिम परकाष्ठा को छू रही है अब इसे लगने लगा है कि अंग्रेज़ों द्वारा पहनाई गई गुलामी की उन बेड़ियों की जकडन इतनी यातनामई इतनी कष्टदायक नहीं थी जितनी आज इस स्वतन्त्रता रूपी पुष्प माला के पुष्पों के चुभने की भीषण वेदना है और अब इस वेदना की त्रीवता सहनशक्ति से बाहर हो चुकी है लेकिन माँ भारती का रुदन इसका क्रंदन किसी को सुनाई नहीं दे रहा है परन्तु माँ अब और नहीं सह सकती और अब हर और से निराश-हताश होकर इस वेदना से बचने का इसे जैसे सिर्फ एक ही उपाय सुझाई दे रहा है अब मात्र एक ही विकल्प बचा है और इसीलिये अब माँ भारती तड़प-तड़प कर केवल यही पुकार रही है “...मुझे फिर से अपनी गुलामी की ज़ंजीरों में जकड़ लो मुझ पर फिर से शासन करो मगर मुझे मेरे इन कपूतों से बचाओ अंग्रेज़ों वापस आओ...”
Friday, 6 July 2012
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